मूवी रिव्यू : कॉमेडी ड्रामा में इमोशन का ज़बरदस्त तड़का है इरफान की अंग्रेजी मीडियम
इरफान खान बॉलीवुड के उन चुनिंदा एक्टर्स में से एक हैं जो अपनी शानदार एक्टिंग से किरदारों को पर्दे पर जीवित कर देते हैं। इरफान अपनी एक्टिंग से आपको हंसा भी सकते हैं और रुला भी सकते हैं और कुछ ऐसा ही उन्होंने किया है अपनी नई फिल्म अंग्रेज़ी मीडियम में। लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे इरफान ने इस फिल्म के साथ बड़े पर्दे पर वापसी की है। इरफान के फैन्स उन्हें स्क्रीन पर काफी मिस कर रहे थे और इस फिल्म में इरफान की एक्टिंग को देखकर कोई कह ही नहीं सकता है कि वे कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से लड़ रहे हैं।
कहानी
अंग्रेज़ी मीडियम 2017 में रिलीज़ हुई फिल्म हिंदी मीडियम का दूसरा भाग है। जहाँ हिंदी मीडियम में अपनी बेटी को अंग्रेज़ी स्कूल में दाखिला दिलवाने के लिए इरफ़ान मसक्कत करते दिखे थे, वहीँ इस बार उन्हें अपनी बेटी को विदेशी यूनिवर्सिटी में दाखिला दिलवाने के लिए पापड़ बेलने पड़े। फिल्म चम्पक बंसल (इरफान खान) और उसकी बेटी तारीका (राधिका मदान) के इर्द-गिर्द घूमती है। चम्पक की उदयपुर में खानदानी मिठाई की दूकान है और वह एक सिंगल पिता है। तारिका पढ़ने में बहुत तेज़ है और उसका सपना है कि वह विदेश में जाकर पढाई करे लेकिन चंपक को यह मंजूर नहीं है। लेकिन बाद में बेटी के प्यार के आगे चंपक को झुकना ही पड़ता है और वह ठान लेता है कि चाहे जो भी हो जाए वो तारिका को विदेश में दाखिला दिलवा कर ही रहेगा। चंपक का एक भाई है गोपी (दीपक डोबरियाल) जिसके साथ चंपक की लड़ाई होती रहती है लेकिन बेटी का सपना पूरा करने के लिए दोनों जी-जान लगा देते हैं। फिल्म एक मिडिल क्लास बाप-बेटी की खूबसूरत बॉन्डिंग और बच्चों के सपने पूरे करने के लिए एक बाप के स्ट्रगल की कहानी है। इस फिल्म में डायरेक्टर होमी अदजानिया ने मिडिल क्लास फैमिली के सपने और एक बाप-बेटी के रिश्ते को बखूबी दर्शाया है। वहीँ होमी इस फिल्म के जरिए यह संदेश देने की भी कोशिश कर रहे हैं कि कैसे यंग जनरेशन अपने सपनों को पूरा करने की चाह में अपनों को ही अनदेखा कर देते हैं। फिल्म के जरिए यह सन्देश देने की कोशिश की गई है कि अच्छी शिक्षा के लिए विदेश जाना ज़रूरी नहीं, भारत में रह कर भीअच्छी पढाई की जा सकती है।
डायरेक्शन और एक्टिंग
डायरेक्शन की बात की जाए तो डायरेक्टर होमी अदजानिया ने इस कॉमेडी ड्रामा के जरिए एक गंभीर सन्देश देने की कोशिश की है। फिल्म के फर्स्ट हाफ काफी मज़ेदार है और इसमें काफी ऐसे सीन हैं जहाँ दर्शक ठहाके लगा कर हँसते हैं, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है दर्शकों का ध्यान भटकने लगता है। इंटरवल के बाद कई नए किरदारों की एंट्री होती है जिसके जरिए डायरेक्टर ने फिल्म को बांधे रखने की कोशिश की है। इस फिल्म में होमी अदजानिया ने छोटे शहर का बोलचाल, मानसिकता और रहन-सहन बखूबी दर्शाया है।
अंग्रेजी मेडियम फिल्म की जान है इरफ़ान और दीपक डोबरियाल जैसे मंझे हुए एक्टर्स की शानदार परफॉरमेंस। इरफान खान ने अपने ही अंदाज़ में लोगों को हंसाया, रुलाया और एक पिता की मजबूरियों को दिखाकर भावुक भी किया। इरफ़ान की एक्टिंग ही इस फिल्म को देखने लायक बनाती है। राधिका मदान ने भी अपना किरदार बखूभी निभाया है। दीपक डोबरियाल ने हिंदी मेडियम की तरह ही इस बार भी बेहतरीन एक्टिंग की है। उनकी कॉमिक टाइमिंग और एक्सप्रेशन ज़बरदस्त हैं। करीना कपूर, डिंपल कपाड़िया, पंकज त्रिपाठी, कीकू शारदा और रणवीर शौरी जैसे कलाकारों का रोल छोटा है लेकिन सब अपने-अपने रोल में बढ़िया काम किया है।
अगर आप इस फिल्म से भी हिंदी मीडियम जैसी परफॉरमेंस की उम्मीद लेकर जाएंगे तो आपके हाथ निराशा लगेगी। अंग्रेजी मीडियम की कहानी और निर्देशन हिंदी मीडियम के आगे कमज़ोर दिखता है। लेकिन इस फिल्म के कलाकारों की शानदार एक्टिंग इसे देखने लायक बनाती है। आप भी इस फिल्म को देखने जाएं, उम्मीद है कि चंपक बंसल आपको अंग्रेजी और ज़िंदगी का पाठ पढ़ने में सफल होंगे।
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